MA Semester-1 Sociology paper-III - Social Stratification and Mobility - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2683
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।

उत्तर -

समाज में लैंगिक भेदभाव
(Gender Discrimination in Society)

सामान्य रूप से भारतीय शिक्षा व्यवस्था के प्राचीन स्वरूप पर विचार किया जाय समाज में लिंग भेद के आधार पर शिक्षा व्यवस्था की उपलब्धता थी। बालिकाओं को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार नहीं था। समाज में पुरुष वर्ग की प्रधानता के कारण शिक्षा क्षेत्र में पुरुषों की ही प्रधानता थी। इसके मूल में अनेक कारण थे। आज की दृष्टि पर विचार किया जाय तो समाज में बालिकाओं को पराया धन कहकर माता-पिता उनकी उपेक्षा करते हैं। इस स्थिति में उसे शिक्षा प्रदान नहीं कराते हैं। इसके साथ-साथ वंश चलाने का दायित्व भी पुत्र को ही दिया जाता है। इसलिये पुत्रियों के प्रति उपेक्षा का भाव रखा जाता है। वर्तमान समाज में भी यह रुढ़िवादी परम्परा चली आ रही है। आज भी शिक्षित माता-पिता विभेद उत्पन्न करते हैं। इस प्रकार की मानसिकता का विकास समाज में अनेक कारणों से है जिनका वर्णन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है-

(1) समाज में बालिकाओं की बराबर संख्या का अभाव - सामान्य रूप से वर्तमान समय में बालक-बालिकाओं का अनुपात समाज में बराबर नहीं है। बालिकाओं की संख्या दिन-प्रतिदिन गिरती जा रही है। इसके परिणामस्वरूप नारी अपने संघर्ष के लिये साहस एकत्रित नहीं कर पा रही है। भ्रूण हत्या की अनेक तकनीकियों ने बालिकाओं की संख्या कम कर दी है। इससे भी समाज में नारी को उचित सम्मान नहीं मिल पा रहा है। परिणामस्वरूप शिक्षा के क्षेत्र में नारी की स्थिति पिछड़ी हुई है।

(2) पुरुष प्रधान समाज - भारतीय समाज में पुरुष वर्ग की पूर्ण प्रधानता है। इसके साथ सम्पूर्ण विश्व में कुछ स्थानों को छोड़कर पुरुष वर्ग की प्रधानता ही रही है। इस कारण प्राचीन काल से अब तक समाज में शिक्षा का अधिकार पुरुष वर्ग को ही रहा है। समाज में नारी एवं पुरुष दोनों के क्षेत्र को विभाजित कर दिया गया है। पुरुष का क्षेत्र घर के बाहर है तथा नारी का क्षेत्र घर के अन्दर। इसलिये शिक्षा बाहरी क्षेत्र होने के कारण उसे पुरुष वर्ग के लिये ही सीमित रखा गया है। नारी को कोमल एवं अबला मानकर उसके हितों की उपेक्षा की गयी है तथा शिक्षा के क्षेत्र पर उसे पूर्ण अधिकार प्रदान नहीं किये गये हैं।

(3) नारी की योग्यता पर सन्देह - नारी की योग्यता पर भी समाज में सन्देह किया जाता है। समाज के 'अनेक व्यक्ति अनेक भ्रामक उदाहरण लोकोक्ति एवं मुहावरों का प्रयोग करके यह सिद्ध करना चाहते हैं कि नारी में पुरुष की तुलना में योग्यता का अभाव माना जाता है जबकि ऐसा नहीं है। इस धारणा से भी बालिकाओं को समाज में उचित स्थान प्राप्त नहीं होता है तथा शिक्षा के क्षेत्र में असमानता की स्थिति उत्पन्न हो जाती हैं।

(4) बालिकाओं को कमजोर समझना – बालिकाओं को कमजोर समझने की परम्परा समाज में प्रारम्भ से ही है जो कि आज भी दृष्टिगोचर होती है। नारियों को पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है तथा समाज की यह भावना है कि नारी शारीरिक रूप से कमजोर होती है। इन सभी भ्रामक एवं निराधार धारणाओं ने नारी को शिक्षा के क्षेत्र में अधिकार प्राप्त नहीं होने दिया है। बालिकाओं को सामान्य शिक्षा प्रदान करके ही अभिभावक अपने कर्त्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं जबकि बालिकाओं को उच्च शिक्षा के लिये धन की कमी बताकर या अनेक ऋण बंताकर अपने कर्त्तव्यों से विमुख हो जाते हैं। कुछ अभिभावक तो बालिकाओं को सामान्य शिक्षा भी प्रदान नहीं कर पाते हैं।

(5) नारी की संकीर्ण सोच - नारी की संकीर्ण सोच भी उसकी समाजिक प्रतिष्ठा को गिराती है। अनेक स्त्रियाँ अपने गर्भ से पुत्री उत्पन्न होने पर दुःखी हो जाती हैं। उनका मोह पुत्र से सम्बद्ध होता है। इस प्रकार वह बालिकाओं के प्रति भेदभाव करने में भी संकोच नहीं करती हैं। इसलिये यह माना जाता है कि नारी ही नारी की शोषक है। यदि वह अपने पुत्र एवं पुत्रियों के प्रति समान व्यवहार के लिये वचनबद्ध हो जाय तो निश्चित ही समाज में नारी को सम्मान की प्राप्ति सम्भव है। इस प्रकार नारी की सोच भी उसको शिक्षा के क्षेत्र में पीछे कर देती है। स्वयं नारी आगे बढ़ने का प्रयास ही नहीं करती है।

(6) धार्मिक साहित्य का प्रभाव - अनेक अवसरों पर यह देखा जाता है कि हमारे मनीषियों ने नारी की स्वतन्त्रता पर ही प्रतिबन्ध लगा दिया है जिससे उसकी शिक्षा में बाधा उत्पन्न होती है। धार्मिक ग्रन्थों में वर्णन किया जाता है कि स्वतन्त्रता प्राप्त करने पर नारी बिगड़ जाती है। नारी का कार्य क्षेत्र सीमित करते हुए उसे पुरुष की आज्ञा का पालन करने की सलाह दी जाती है। पुरुष कितना भी अधर्मी एवं अत्याचारी है उसकी सेवा करना नारी का धर्म माना जाता है। इस प्रकार की धार्मिक विचारधाराओं ने भी लिंग भेद की समस्या कों जन्म दिया है तथा नारी को उसके उचित स्थान एवं शिक्षा प्राप्त करने के अधिकार से वंचित कर दिया है।

(7) संघर्ष शक्ति का अभाव - संघर्ष शक्ति के अभाव के कारण भी नारी को समाज में उचित स्थान प्राप्त नहीं हुआ है। सामान्य रूप से अन्याय सहन करने वाला व्यक्ति भी उतना ही दोषी है जितना अन्याय करने वाला। इसलिये नारी की समाज में निम्न स्थिति के लिये स्वयं नारी भी दोषी है। उसके द्वारा पुरुष के अमर्यादित व्यवहार कर प्रतिरोध नहीं किया जाता है जिससे पुरुष वर्ग का अत्याचार बढ़ता जाता है। इससे समाज में नारी को सम्मान गिरता है तथा शिक्षा के क्षेत्र में भी उसके साथ भेदभाव किया जाता है।

(8) बालिकाओं के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण - समाज में बालिकाओं के प्रति नकारात्मक सोच है। बालिका के जन्म लेने पर अभिभावक इस चिन्ता से ग्रस्त हो जाते हैं कि इसके शादी-विवाह में हमको आवश्यकता से अधिक धन खर्च करना होगा। इसके बाद भी बालिका के ससुराल वाले उसको दुःखी रखते हैं तो अभिभावकों को आजीवन कष्ट सहन करना पड़ता है। इन अनेक नकारात्मक विचारों से बहुत से अभिभावक गर्भ में ही बालिका की हत्या करा देते हैं। इसके अतिरिक्त शेष अभिभावक बालिकाओं को शिक्षा प्रदान करने की अपेक्षा उसकी शादी के लिये धन एकत्रित करने में अपना समय व्यतीत करते हैं। इससे समाज में बालिकाओं को शिक्षा प्राप्त नही हो पाती है।

(9) व्यावहारिक रूप से समान अधिकार का अभाव - शिक्षा के क्षेत्र में समान व्यवहार की स्थिति का न होना सामाजिक व्यवहार में समानता का अभाव है। समाज में नारी एवं पुरुष दोनों को प्रत्येक क्षेत्र में समान अधिकार प्राप्त हैं। धर्म में भी इस तथ्य का उल्लेख है। प्रत्येक कार्य में पुरुष नारी की समान सहभागिता होनी चाहिये परन्तु व्यवहार में ऐसा नहीं है। व्यवहार में पुरुष द्वारा नारी से किसी भी निर्णय में सलाह नहीं ली जाती है। इसके परिणामस्वरूप समाज में नारी उपेक्षा का पात्र बनकर रह जाती हैं। इसका प्रभाव यह होता है कि बालिकाओं को बालकों के समान शिक्षा के अवसर प्राप्त नहीं होते।

(10) नारी सम्मान का अभाव - समाज में नारियों के सम्मान का आज भी अभाव है। समाज में पुरुष नारी से किसी कार्य को सम्पन्न करने के लिये सलाह नहीं लेता है। उसकी सलाह पर सन्देह व्यक्त किया जाता है कि उसमें बुद्धि का अभाव है। इस प्रकार अनेक क्षेत्रों में नारी का सम्मान नहीं होता है। सरकार के प्रयास से नारी आरक्षण के अनुसार ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में महिलाएँ जनप्रतिनिधि के रूप में चुनी जाती हैं परन्तु वह चुनने के बाद अपने पति की इच्छा के विरुद्ध किसी कागज पर हस्ताक्षर नहीं कर सकती है। इस प्रकार की स्थिति शिक्षा में असमानता की स्थिति उत्पन्न करती है क्योंकि नारी पुरुष के हाथ का खिलौना मात्र बनकर रह जाती है।

(11) सामाजिक परम्पराएँ - समाज में कन्या पक्ष द्वारा धन देकर वर पक्ष को सन्तुष्ट करने की परम्परा है जो कि नारी शिक्षा के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है। अभिभावक बालिका की शिक्षा पर जो धन खर्च करना चाहता है उसे एकत्रित करके वह उसका विवाह कर देता है। शिक्षित अभिभावक भी बालिका को सामान्य शिक्षा प्रदान करके सन्तुष्ट हो जाते हैं तथा अपने इस कार्य को सही ठहराने के लिये तर्क देते हैं कि उसको चौका चूल्हा ही तो सम्भालना है। इसके लिये सामान्य शिक्षा ही पर्याप्त है। इस प्रकार की परम्पराएँ ही बालिका. शिक्षा के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती हैं।

उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय समाज की संरचना पूर्णत: पुरुष केन्द्रित है। इसलिये नारी को पुरुष कभी अपने समकक्ष नहीं देखना चाहता परन्तु वह यह नहीं समझता है कि शिक्षित नारी समाज एवं राष्ट्र के लिये उपयोगी है तथा घर की रोशनी होती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
  3. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  4. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
  5. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
  6. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
  8. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  9. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  10. प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
  11. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
  12. प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
  13. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
  16. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
  18. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
  19. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  20. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  21. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  22. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  23. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  24. प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  25. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  26. प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  27. प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
  28. प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
  29. प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
  30. प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  31. प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
  32. प्रश्न- जाति-व्यवस्था के स्थायित्व के लिये उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिये।
  33. प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
  34. प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।
  35. प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
  36. प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
  39. प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
  40. प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
  41. प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।
  42. प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
  43. प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
  44. प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
  45. प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
  46. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
  47. प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  48. प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
  50. प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
  51. प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  52. प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  53. प्रश्न- धर्म की आधुनिक किन्हीं तीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये।
  54. प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
  55. प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
  56. प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
  57. प्रश्न- वर्तमान में धार्मिक जीवन (धर्म) में होने वाले परिवर्तन लिखिये।
  58. प्रश्न- जेण्डर शब्द की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
  59. प्रश्न- जेण्डर संवेदनशीलता से क्या आशय हैं?
  60. प्रश्न- जेण्डर संवेदशीलता का समाज में क्या भूमिका है?
  61. प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- समाजीकरण और जेण्डर स्तरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।
  64. प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  65. प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- परिवार में जेण्डर के समाजीकरण का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  67. प्रश्न- लैंगिक समानता के विकास में परिवार की भूमिका का वर्णन कीजिये।
  68. प्रश्न- पितृसत्ता और महिलाओं के दमन की स्थिति का विवेचन कीजिये।
  69. प्रश्न- लैंगिक श्रम विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए।
  70. प्रश्न- महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- पितृसत्तात्मक के आनुभविकता और व्यावहारिक पक्ष का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  72. प्रश्न- जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से क्या आशय है?
  73. प्रश्न- पुरुष प्रधानता की हानिकारकं स्थिति का वर्णन कीजिये।
  74. प्रश्न- आधुनिक भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है?
  75. प्रश्न- महिलाओं की कार्यात्मक महत्ता का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- सामाजिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता का वर्णन कीजिये।
  77. प्रश्न- आर्थिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता की स्थिति स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- अनुसूचित जाति से क्या आशय है? उनमें सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक न्याय का वर्णन कीजिये।
  79. प्रश्न- जनजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए तथा जनजाति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- भारतीय जनजातियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्गों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- जनजातियों में महिलाओं की प्रस्थिति में परिवर्तन के लिये उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिये।
  83. प्रश्न- सीमान्तकारी महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु किये जाने वाले प्रयासो का वर्णन कीजिये।
  84. प्रश्न- अल्पसंख्यक कौन हैं? अल्पसंख्यकों की समस्याओं का वर्णन कीजिए एवं उनका समाधान बताइये।
  85. प्रश्न- भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति एवं समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- सीमान्तिकरण अथवा हाशियाकरण से क्या आशय है?
  88. प्रश्न- सीमान्तकारी समूह की विशेषताएँ लिखिये।
  89. प्रश्न- आदिवासियों के हाशियाकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- जनजाति से क्या तात्पर्य है?
  91. प्रश्न- भारत के सन्दर्भ में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या कीजिये।
  92. प्रश्न- अस्पृश्य जातियों की प्रमुख निर्योग्यताएँ बताइये।
  93. प्रश्न- अस्पृश्यता निवारण व अनुसूचित जातियों के भेद को मिटाने के लिये क्या प्रयास किये गये हैं?
  94. प्रश्न- मुस्लिम अल्पसंख्यक की समस्यायें लिखिये।

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